अपनी ओर निहारो – हिंदी कहानी
उड़ीसा प्रान्त की घटना है। सन् 1850 में वहाँ बहुत भीषण अकाल पड़ा। एक गरीब परिवार में दो बच्चे और उनकी माँ रहा करते थे। माँ बच्चों के लिए भीख माँगती थी। जो-कुछ मिलता, उसे पहले बच्चों को खिलाती थी; अगर कुछ बच जाता, तो खुद खा लेती, नहीं तो भूखी सो जाती थी। (अपनी ओर निहारो)
मुसीबत आती है तो अकेले नहीं आती। एक दिन छोटा बच्चा भूख से तड़प कर मर गया। माँ बीमार पड़ गयी। अब बड़े लड़के को भीख माँगने जाना पड़ता। जो-कुछ मिलता, वह पहले अपनी माँ को खिलाता, और तब खुद खाता।
एक बार उसे कई दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला। किसी तरह गिरता-पड़ता वह एक घर के सामने पहुँचा। घर के मालिक ने कहा- “मेरे पास थोड़ा-सा भात है। अगर तुम यहीं बैठ कर खा लो, तो मैं दे दूंगा।’
लड़के ने हाथ जोड़ कहा- “मेरी माँ बीमार है। पिछले हफ्ते से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया है। मैं उसे बिना खिलाये कैसे खा पाऊँगा?”
मालिक ने कहा- “मैं घर ले जाने के लिए कुछ नहीं दूंगा।”
उस लड़के ने फिर अनुनय-विनय की- “मेरी माँ जब अच्छी थी, तब मुझे बिना खिलाये कुछ भी नहीं खाती थी। आज वह बीमार है, तो उसे बिना खिलाये मैं नहीं खा पाऊँगा।”
मालिक ने घर का दरवाजा बन्द कर लिया।
भूखा लड़का कुछ नहीं बोला। उसे लगा कि वह बेहोश हो जायेगा। उसने एक बार फिर कोशिश की कि माँ के लिए कुछ मिल जाये। दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन गिरता-पड़ता वह दरवाजे तक गया। दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन दरवाजा नहीं खुला।
रात हो गयी, फिर सुबह हुई। सड़क पर चलते-फिरते लोगों ने ले कि वह मरा पड़ा है।
कैसी लगी तुम्हें यह कहानी? अपनी माँ की खातिर जिसने मरना पसन्द किया: लेकिन माँ को खिलाये बिना जिसने अन्न का एक अपने मुँह में नहीं डाला—ऐसा था वह पुत्र। अपनी ओर निहारो – तुममें और उस पुत्र में कितना अन्तर है? कम या ज्यादा? क्या तुम अपनी माँ के लिए, अपने पिता के लिए जिन्दगी के सारे खतरे उठाने की तैयार हो?
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