अपनी बुराइयाँ और दूसरों की अच्छाइयाँ देखो – Hindi Kahani
जब ब्रह्मा जी सृष्टि रचने लगे, तब उन्होंने सोचा कि यदि मेरे काम की अच्छाइयाँ-बुराइयाँ बताने वाला कोई होता, तो अच्छा रहता। उन्होंने सृष्टि रचने का काम रोक कर एक टीकाकार को गढ़ा और उससे बोले-“देखो भाई, तुम्हारा काम यह है कि जो-कुछ मैं बनाऊँ, उसकी बुराई-भलाई तुम मुझे बताते रहना।” (अपनी बुराइयाँ और दूसरों की अच्छाइयाँ देखो)
ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना शुरू की। टीकाकार ने भी अपना काम करना शुरू कर दिया। उसे प्रत्येक में त्रुटि ही दिखायी पड़ती। ब्रह्मा जी ने हाथी बनाया, तो टीकाकार ने कहा-“हाथी ऊपर नहीं देख पाता।” ऊँट बना, तो उसने कहा- “यह तो बड़ा आलसी जीव है।” जब बन्दर बना, तब वह बोला-“यह बड़ा चपल है।”
ब्रह्मा जी बहुत परेशान हुए। तब उन्होंने बड़ी मेहनत करके सृष्टि का सबसे अच्छा प्राणी बनाया—मनुष्य। टीकाकार को तो बुराइयाँ निकालने का रोग था। उसने खूब बारीकी से छानबीन की। फिर बोला-“यदि इसके सीने में एक खिड़की बन जाती, तो इसके मन की बातें दीखने लगतीं।”
बच्चो, कहीं तुम्हारी भी आदत तो उस टीकाकार की तरह नहीं पड़ यी है? टीकाकार से ब्रह्मा जी ने कहा था कि मैं जितनी चीजें बनाऊँ उनकी बुराई-भलाई बताना। लेकिन उसने दूसरों की बुराइयों की ही चर्चा की उनकी अच्छाइयों की ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया। वह यह भी भल गया कि उन्होंने उसे भी बनाया है। अपनी बुराइयों की ओर उसने निगाह ही नहीं डाली।
तम भी जब कभी दूसरों को देखो और उनमें कोई बुराई दिखायी पड़े, तो उनकी बुराइयों की बात को अपने मुँह पर लाने से पहले अपनी
ओर देखना। सोचना, कहीं ये बुराइयाँ मुझमें तो नहीं हैं। जिनमें तुमने बुराइयाँ देखी हैं, उनमें अच्छाइयाँ भी अवश्य होंगी। तो उन अच्छाइयों पर ध्यान देना। उन अच्छाइयों को अपनाने की कोशिश करना। दूसरों की बुराइयों की उपयोगिता तुम्हारे लिए इतनी ही है कि उनकी याद करके अपनी बुराइयाँ दूर कर लो।
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