खण्ड दन्त चाणक्य – हिंदी कहानी
चाणक्य राजा चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान मन्त्री थे। उनके बचपन की एक घटना है। (खण्ड दन्त चाणक्य )
एक दिन उनकी माँ उनका मुँह देख कर रोने लगी। चाणक्य ने पूछा- “माँ! तू क्यों रोती है?” माँ ने कहा- “तेरे भाग्य में राजा होना लिखा है, इसलिए रोती
‘ चाणक्य ने कहा- “मैं राजा बनूँगा, तब तो तुझे खुश होना चाहिए।”
माँ बोली- “मैं अपने दुर्भाग्य पर रो रही हूँ। तू राजा बन जायेगा, तब तू कहाँ याद रखेगा अपनी बुढ़िया माँ को! राजा और योगी किसी के नहीं होते, बेटा।”
चाणक्य ने पूछा- “यह कैसे जाना तूने कि मैं राजा बनूँगा?’
माँ ने जवाब दिया-“तेरे सामने के जो दाँत हैं, इनकी बनावट बताती है कि तू राज्य का सुख भोगेगा।”
चाणक्य कुछ देर तक खड़े-खड़े सोचते रहे। फिर सामने पड़े पत्थर को उठा कर उससे सामने के अपने दाँत तोड़ डाले। माँ हाय-हाय करती रह गयी। चाणक्य ने कहा-“मैंने ये दाँत तोड़ दिए है अब तो मैं नहीं बन पाऊँगा मैं राजा। मुझे नहीं चाहिए राज-सुख। मैं सब कुछ छोड़ सकता हूँ, लेकिन तुझे नहीं छोड़ सकता।”
उस दिन से चाणक्य ‘खण्डदन्त’ (टूटे हुए दाँत वाले) कहलाये. चाणक्य माँ की ममता के पीछे राज-सुख छोड़ने को तैयार जानते थे कि राज-सुख नहीं मिलेगा, तो कुछ बिगड़ेगा नहीं, लेकिन माँ को भुला दिया तो सब-कुछ छिन गया। तब उस नुकसान को पूरा करेगा?
बच्चो. ध्यान रखना! कहीं तुम भी तो यह नुकसान नहीं उत्ता रहे हो? माँ की ममता अनमोल है। इसको प्राप्त करने के लिए सब- कुछ देने को तुम्हें तैयार रहना चाहिए।
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