तीन बूढ़े – Bhagwan ki Kahaniya
एक पादरी थे। वह घूम-घूम कर लोगों को उपदेश दिया करते थे। वह बाइबिल पढ़ कर सुनाते, प्रार्थनाएँ पढ़ने के लिए कहते और प्रार्थना करने का दंग बताते। पानी के जहाज से वह पहँचे एक सुनसान टाप में। वहाँ तीन बूढ़े रहते थे — न पढ़े-लिखे, न कोई शान-शौकत, सीधे-सादे इनसान। पादरी ने पछा—“प्रार्थना करते हो?” वे बोले- “हम तो बस, भगवान् को याद करना जानते हैं। और हमें कुछ नहीं आता।”
पादरी ने पूछा- “कैसे उनको याद करते हो ?”
वे सरल भाव से बोले- “हम बैठ जाते हैं और कहते है करो, रक्षा करो।”
पादरी ने डाँटा–“यह भी कोई ढंग हुआ? सारी जिन्दगी बरबाद कर दी। आओ, मैं तुम्हें प्रार्थना करने का सही ढङ्ग बताता हूँ।”
फिर पादरी ने बड़ी मेहनत करके बाइबिल की एक प्रार्थना उन्हें सिखायी। बेचारे अपढ़ थे वे। बार-बार वे भूल जायें और बार-बार पादरी को बताना पड़े। प्रार्थना सिखा कर पादरी पानी के जहाज से वापस चल दिये। थोड़ी देर बाद रात हो गयी। जहाज पर खड़े-खड़े पादरी ने देखा कि जहाज की ओर तीन रोशनी बढ़ी चली आ रही हैं।
पादरी सोचने लगे कि ये रोशनी कैसी हैं?
जल्दी ही वे रोशनी नजदीक आने लगीं और जब वे कुछ नजदीक आयीं, तब पादरी ने देखा कि वे ही तीनों बूढ़े लालटेने हाथ में लिये हुए पानी पर चलते हुए जहाज की तरफ तेजी से बढ़े चले आ रहे हैं। हाँ. हाँ…पानी पर चलते हुए, जैसे हम-तुम जमीन पर चलते हैं।
पादरी आश्चर्य में डूब गये।
वे बूढ़े दूर से चिल्लाये-“ओ पादरी जी, रुको-रुको। तुमने जो प्रार्थना हमें बतायी थी, उसे हम भूल गये हैं। मेहरबानी करके उसे फिर से बता दो।”
पादरी ने आश्चर्य से पूछा- “लेकिन पानी पर किस तरह चल रहे हो?”
एक बूढ़ा बोला-“इसमें क्या बात है भाई? नाव हमारे पास है नहीं। चल-फिर हम लेते ही हैं। हमने भगवान् से कहा कि कृपा करो हमारे ऊपर; दौड़ कर हम पादरी जी के पास हो आयें। यह कह कर हम चल पड़े।”
पादरी ने हाथ जोड़े और बोले-“महात्मा लोगो, वापस लौट जाओ। तुम लोगों को अब और कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं है।
तुम जैसे पहले भगवान् की याद करते थे, वैसे ही किया करो। भगवान तुम्हारे दिलों में बैठे-बैठे सच्चे विश्वास से भरी तुम्हारी पुकार सुन रहे हैं। बस, उन्हें यही चाहिए।”
बच्चो, इस कहानी से तुम्हें क्या बात समझ में आती है? इसमें बहत-सी बातें छिपी पड़ी हैं। पहली तो यह कि भगवान् से मिलने के लिए धन, बल, ऐश्वर्य और विद्या-किसी चीज की जरूरत नहीं है। उनको पाने के लिए सिर्फ जरूरत है पूरे विश्वास के साथ उन्हें हृदय से पुकारने की।
उन तीन बूढ़े के पास क्या था? कुछ भी तो नहीं। बस, उनके पास सच्चा विश्वास था। उसी विश्वास के बल पर वे ईश्वर को पुकार लेते थे। उनसे अपने मन की बात भी कह देते थे और उनसे जो माँगना हो, माँग लिया करते थे। इसी विश्वास के बल पर उन्हें वह क्षमता मिल गयी, जो बड़े-बड़े सिद्ध पुरुषों को नहीं मिलती।
भगवान् के लिए तुम्हारे हृदय में सच्चा विश्वास जग जाये, तो फिर और कुछ नहीं करना है तुम्हें। सारे दुःख पार कर लिये तुमने। फिर भगवान् तुम्हारी तरफ अपने हाथ बढ़ायेंगे; उन हाथों को पकड़ लेने में नहीं चूकना।
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