माँ की कोख कब धन्य होती है – Hindi Kahani
बगदाद का बादशाह हारूँ रशीद एक बार अपने मन्त्री से नाराज हो गया। उसने मन्त्री और उसके पुत्र फज़ल को कैद कर लिया। मन्त्री को ऐसी बीमारी थी कि ठण्डा पानी उसे नुकसान करता था। लेकिन कैदखाने में गरम पानी का प्रबन्ध कैसे हो पाता? (माँ की कोख)
तब फज़ल ने एक उपाय किया। वह पानी का लोटा जलती हुई लालटेन पर रख देता। रात भर में लालटेन की गरमी से पानी थोड़ा-बहुत गरम हो जाता। लेकिन, कैदखाने की देखरेख करने वाला व्यक्ति बहुत निर्दयी था।
उसने लालटेन हटवा दी। अब फज़ल अपने पिता को गरम पानी कैसे दे? ठण्डे पानी से पिता को जो कष्ट होता था, वह उससे देखा नहीं जाता था।
अब उसने एक दूसरा उपाय किया। उन दिनों जाड़े का मौसम था. वह कम्बल ओढ़ कर सोता था। सोने से पहले वह कम्बल ओढ़ कर सोता था। अब फज़ल पानी का लोटा पेट पर रख लेता और ऊपर से कम्बल ओढ़ लेता।
शरीर और जल की गरमी से पाना थाड़ा-बहुत गरम हो जाता था, लेकिन बेचारा सो नहीं पाता था। सो जाने पर लोटा गिर जाने का भय फज़ल को बिलकुल नहीं सोने देता था।
कई दिनों तक लगातार जागने के कारण फज़ल बीमार पड गया. लेकिन सेवा करने के लिए पिता मना कर देंगे, इस भय से उसने उन्हें कुछ नहीं बताया।
एक दिन कैदखाने के नौकर ने मन्त्री को सभी बातें बता दीं। मन्त्री फज़ल को गले लगा कर रोने लगा। बोला— “तेरे जैसा बेटा मेरे साथ हो. तो दोज़ख (नरक) की भी तकलीफें झेल ले जाऊँगा। तूने अपनी माँ की कोख को धन्य कर दिया।”
माँ की कोख धन्य कब होती है? जब सन्तान माँ-बाप की सेवा में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करती है; जब वह माँ-बाप के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मान कर जीवन व्यतीत करती है।
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