रक्षक और भक्षक – Hindi Kahani
भगवान् बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। एक दिन सिद्धार्थ अपने बगीचे में टहल रहे थे। ऊपर आसमान में राजहंस उड़े जा रहे थे। सहसा उन्होंने देखा कि एक राजहंस उलटता-पलटता धरती की ओर गिर रहा है। उनके मुँह से एक चीख निकली। वह दौड़ कर वहाँ पहुँचे, जहाँ वह राजहंस एक कॅटीली झाड़ी में गिरा पड़ा था। (रक्षक और भक्षक)
उन्होंने देखा कि राजहंस के शरीर में एक बाण चुभा हुआ है। दुःख के मारे उनकी आँखों में आँसू आ गये। उन्होंने घायल राजहंस के शरीर से बाण निकाला। फिर उसके मुँह में दो-तीन बूंद पानी डाला। इसके बाद कुछ हरी पत्तियाँ तोड़ कर उनका रस घाव पर टपकाया। राजहंस की पीड़ा कुछ कम हई. उसने आँखें खोल दी।
अब सिद्धार्थ को कुछ सन्तोष हुआ। उन्होंने उसके शरीर से निकाले गाये बाण को अपनी कलाई में चुभो कर देखा। पीड़ा से वह सिहर उठे। वह बुदबुदाये—इस बाण ने इस बेचारे को कितनी पीड़ा पहँचायी होगी।
तभी दूसरी ओर से उनका सम्बन्धी देवदत्त आया। बोला— “यह राजहंस मुझे दो। मैंने इसे मार गिराया है।”
सिद्धार्थ ने दुखित हो कर पूछा- “तुमने घायल किया है इस बेचारे को? तुम्हे इस बेज़बान जीव पर बिलकुल दया नहीं आयी?”
“दया-वया की बातें छोड़ो। मैंने इसे मारा है, इस पर मेरा अधिकार है।”—देवदत्त ने कहा।
सिद्धार्थ ने कहा- “क्या तुम्हें मालूम नहीं है कि किसी चीज पर उसका अधिकार होता है, जो उसका रक्षक होता है; उसका अधिकार नहीं होता, जो उसे पीड़ा पहुँचाता है, जो उसका भक्षक बन जाता है। जाओ, यह राजहंस मैं तुम्हें नहीं दूंगा। मैंने इसके प्राण बचाये हैं, इस पर मेरा अधिकार है।”
लज्जित हो कर देवदत्त चुपचाप लौट गया।
बच्चो, किसी प्राणी पर उसे जन्म देने वाले का, उसे पालने-पोसने वाले का, उसकी रक्षा करने वाले का अधिकार सबसे अधिक होता है। उसको नष्ट करने वाले का अधिकार उस पर नहीं होता।
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