जाको राखे साइयाँ – Ek Bacche ki Kahani
एक जगह अचानक भूकम्प आ गया। देखते-देखते हजारों लोग मलवे के नीचे दब गये। मलवा हटाने का काम प्रारम्भ हुआ। लगभग एक सप्ताह तक यह काम चलता रहा। सातवें दिन एक मकान का मलवा हटाया गया तो 14-15 वर्ष का एक लड़का अच्छी-भली हालत में मिला। उसने अपनी जो राम-कहानी सुनायी, वह इस प्रकार है
मैं केले बेच रहा था कि एकाएक जमीन हिलने लगी। फिर छत का एक शहतीर मेरे ऊपर आ गिरा। शहतीर के ऊपर पूरी छत भी गिरी; परन्तु वह शहतीर पर ही टिक गयी। छत गिरने से मुझे बिलकुल चोट नहीं लगी।
तभी एक बार फिर जमीन हिल उठी और एक कोने से हवा आने के लिए जगह बन गयी। अब मुझे लगने लगा कि मैं बच जाऊँगा। जमीन फिर एक बार हिली। दुकान का फर्श टूट गया और धरती के नीचे से पानी की धारा फूट पड़ी। तब से ले कर आज तक मैं केले खा रहा हूँ और पानी पी रहा हूँ।
बच्चो, तुमने यह दोहा पढ़ा होगा जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय । बाल न बाँका कर सके, जो जग बैरी होय ॥
हाँ सचमुच, जिसको साइयाँ (भगवान्) बचाना चाहे, उसको कौन मार सकता है? सात दिनों तक मलवे के नीचे जो दबा रहे, उसके खाने-पीने और साँस लेने के लिए हवा का प्रबन्ध करने वाला कौन था? वही साइयाँ। जिसके ऊपर पूरी-की-पूरी छत गिर जाये और उसका बाल भी बाँका न हो, सो कैसे? उसी साइयाँ के कारण।
बच्चो, केले बेचने वाले लड़के की कहानी पढ़ कर तुम्हारा भी विश्वास उस साइयाँ पर जमता है न? यह मत भूलना कि साइयाँ के ही सहारे हम जीवित हैं, साँस लेते हैं, खाते-पीते हैं और बड़े होते हैं। वह महान् से भी महान् है और बलवानों से भी बलवान् है।
वह कण-कम में व्याप्त है। वह हमारे दुःख में रो पड़ता है और अपना हाथ बढ़ा कर कहता है—लो पकड़ो मेरा हाथ, मैं तुम्हारे साथ हूँ। उसको कुछ लोग साई (साइयाँ) कहते हैं, कुछ लोग भगवान्। कुछ लोग अल्लाह और कुछ लोग उसे “गॉड’ कहते हैं। उसके नाम भिन्न-भिन्न हैं, परन्तु है वह एक ही।
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