माता कुमाता नहीं हो सकती – Garib Mata aur Bete ki Kahani
Garib Mata aur Bete ki Kahani – एक गरीब विधवा माँ थी. उसने बड़ी मेहनत करके, बड़ा लाड़-प्यार करके अपने बेटे को पाला-पोसा, बड़ा किया और उसका किया। ब्याह के बाद बेटा अपनी पत्नी का ही पक्षले कर बात-बात पर माँ से लड़ने-झगड़ने लगा।
हमेशा की तरह एक दिन फिर बहू ने सास की झूठी शिकायत अपने पति से कर दी।
बेटे का खून खौल गया। माँ से बोला- “बुढ़िया! या तो तू मर जा या मेरा गला घोंट दे।”
माँ ने यह सुना तो हक्की-बक्की रह गयी। वह रो-रो कर कहने लगी- “यह क्या कह रहा है तू! मैं माँ हूँ। मैं तेरा गला घोदूँगी? पूत कुपूत निकल जाये, लेकिन माता भी कुमाता हो जायेगी क्या?”
Maa aur Bete ki Kahani
बेटा गुस्से से चिल्लाया— “तो क्या मैं कुपूत हूँ?” माँ बोली-“नहीं, नहीं, यह मैंने नहीं कहा।” बेटे का गुस्सा बढ़ गया। वह चीख कर बोला—“और क्या कहा तूने?”
फिर आगे बढ़ कर उसने माँ का गला पकड़ कर उसे दबा दिया। माँ के प्राण-पखेरू उड़ गये।
गुस्से में बेटा पागल बन गया था। गुस्सा समाप्त होते ही उसे पछतावा होने लगा। वह रोने लगा।
माँ की अरथी को कन्धा दिये हुए बेटा चला जा रहा था।
तभी अरथी के अन्दर से आवाज़ आयी— “देख बेटा, सँभल कर चल।”
बेटा चौंक कर रुक गया। सामने देखा—एक साँप फुफकार रहा था।
सारा काम निपटा कर बेटा वापस लौट रहा था। पानी बरस रहा था। उसे फिर आवाज सुनायी पड़ी-“मेरा बेटा घर पहुंच जाये, फिर जी-भर कर बरस लेना।”
अपने हाथों में मुँह छिपा कर बेटा ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा।
सच ही है-माता कुमाता नहीं हो सकती। वह तो मर कर भी बेटे की कुशलता चाहती है।
बच्चो, तुम्हारी माँ ने तुम्हारे लिए जितना कष्ट सहा है, उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। तुम रात-भर जगे, तो वह भी जागती रही। तुमने बिछावन गीला किया, तो तुम्हें सूखे बिछावन पर लिटा कर स्वयं गीले बिछावन पर लेटी रही। तुम्हें थोड़ा भी कष्ट हुआ, तो व्याकुल हो गयी वह।
माँ ने तुम्हारे लिए जो-कुछ किया, उसका बदला तुम कभी भी नहीं चुका पाओगे; लेकिन जितना बन सके, उतना अपने शरीर से उसकी सेवा तो कर ही सकते हो। माँ की सेवा पिता की सेवा के बिना अधरी है: इसलिए पिता की भी सेवा करनी होगी।
यदि माता कुमाता नहीं हो सकती, तो तुम भी माँ-बाप की सेवा करके दिखा दो कि पूत भी कपूत नहीं बन सकता।