पानी – Guru aur Shishya ki Kahani
चार विद्यार्थी थे। गुरु जी ने उनसे पूछा- “तुम्हें सबसे अच्छा क्या लगता है? (Guru aur Shishya ki Kahani)
पहले विद्यार्थी ने कहा- “रुपया-पैसा।” दूसरे ने कहा- “अच्छे-अच्छे कपड़े।” तीसरा बोला— “स्वादिष्ट भोजन।” चौथे ने उत्तर दिया- “पानी।”
चौथे की बात सुन कर तीनों विद्यार्थी हँस पड़े। कहने लगे- “पानी भी कोई अच्छी लगने वाली चीज़ है?” परन्तु गुरु जी ने चौथे विद्यार्थी को हृदय से लगा लिया।
चौथे विद्यार्थी ने अनेक प्रकार की अच्छी-अच्छी चीजों का नाम न ले कर पानी का ही नाम क्यों लिया? हवा-रोशनी की तरह पानी भी जीवन के लिए आवश्यक है, यह बात तो है ही। एक और भी बात है।
देखो, पानी इतना कोमल है कि आँख-जैसे कोमल अंग में पहुँच कर भी कष्ट नहीं देता। लेकिन यह अन्दर-ही-अन्दर इतना कठोर भी है कि पत्थर को भी तोड़ देता है। लेकिन किस तरह तोड़ता है, कभी सोचा है तुमने?
पत्थर पर गिरते समय पानी प्रहार नहीं करता। वह स्वयं ही बूंद-बूंद बन कर बिखर जाता है। बिखर कर, टूट कर वह पत्थर को तोड़ता है—अभिमानी या क्रूर बन कर नहीं।
बच्चो! बुराइयाँ हों, तो उन्हें दूर करने में हिचकिचाना नहीं। परन्तु तुम कठोर मत बनना। पानी की तरह कोमल बने रहना, विनम्र हो कर स्वयं टूटने के लिए तैयार रहना।
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