अधिकार और कर्तव्य – Mahabharat ki Kahani
Mahabharat ki Kahani
महाभारत का युद्ध हुआ। क्यों हुआ? पाण्डवों ने कहा- “हमारे हिस्से की सम्पति हमें दे दो।”
कौरवों ने कहा- “हिस्से के नाम पर सूई की नोक-बराबर भी जमीन नहीं देंगे। हाँ, भीख माँगो, तो दे सकते हैं।”
भगवान कृष्ण समझाने गये- “क्यों किसी का अधिकार छीनते हो?”
कौरवों ने अपनी बात दोहरा दी- “सूई की नोक के बराबर भी ज़मीन नहीं मिलेगी।”
पाण्डवों ने कहा- “हम तो अपना हिस्सा माँगते हैं। भीख क्यों माँगें?”
युद्ध छिड़ गया। हजारों-लाखों योद्धाओं के साथ कौरव भी मारे गये।
यह है किसी का अधिकार छीनने का परिणाम। दूसरों का अधिकार दूसरों का ही होता है। दूसरों का अधिकार छीन कर हम स्वयं उसका उपभोग करें-अधिकार का अर्थ यह कभी नहीं है। हाँ, यदि लेना ही है, तो कर्तव्य लें अपने हिस्से में। दूसरों के हिस्से में अधिकारों को जाने दें। कर्तव्य हमारी सम्पत्ति है। अधिकार परायी सम्पत्ति है। परायी सम्पत्ति का लोभ करना सबसे बड़ी त्रुटि है।
एक बात और। हार त्रुटि करने वाले की ही होती है, भले ही वह कितना ही ताकतवर हो। पाँच और सौ की क्या बराबरी! लेकिन हारे कौरव ही, जो सौ थे। पाण्डव जो पाँच थे, जीत गये।
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