कैसी विलक्षण बात – Pandav aur Kaurav ki Kahani
महाभारत के युद्ध में एक असाधारण घटना घटी। इस युद्ध को टालने के लिए भरसक प्रयत्न किया गया, परन्तु युद्ध ठन ही गया, कौरवों और पाण्डवों की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी हो गयीं। (Pandav aur Kaurav ki Kahani)
इस युद्ध में एक-दूसरे से युद्ध करने को तैयार लोग परस्पर सब सगे सम्बन्धी थे, आत्मीय थे, गुरु-शिष्य थे, भाई-भाई थे। फिर भी युद्ध हो रहा था। कोई कर ही क्या सकता था!
पाण्डवों की तरफ से युधिष्ठिर कौरवों के खेमे पर पहुँचे। वह भीष्मपितामह के पास गये। उन्होंने पितामह को प्रणाम किया। फिर बोले- “युद्ध में विजयी होने के लिए आशीर्वाद माँगने आया हूँ।’
युद्ध में एक पक्ष का योद्धा शत्रुपक्ष के योद्धा के पास जा कर उसे प्रणाम करे और उससे विजयी होने का आशीर्वाद माँगे-कैसी विलक्षण बात! और, इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह कि पितामह ने आशीर्वाद दिया। बोले– “तुम्हें विजयी होने का आशीर्वाद देता हूँ।”
युधिष्ठिर ने पूछा- “पितामहश्री! आपकी मृत्यु किस प्रकार होगी?”
और, भीष्म ने अपनी मृत्यु के विषय में भी बतला दिया। कितनी अद्भुत बात!
बच्चो! इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आपस मतभेद हों, फिर भी एक-दूसरे के लिए हृदय में प्रेम रहना जिसके साथ मतभेद हो, उसे इनसान ही समझना चाहिए, शत्रु नहीं समझना चाहिए। मतभेद के कारण यद्ध की स्थिति बन जाय, एक-दूसरे के प्रति दुर्भावना को पनपने नहीं देना चाहिए।
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